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बस्तर में विकास कार्यों पर ब्रेक — सरपंच संघ के पत्र ने सरकारी दावों की खोली पोल गांवों में मंत्रियों के लगातार दौरों और उद्घाटन कार्यक्रमों के बीच जमीनी स्तर पर गहराता संकट

चंद्रहास वैष्णव

बस्तर। एक ओर सरकार के मंत्री, जनप्रतिनिधि और नेता गांव-गांव पहुंचकर नए निर्माण कार्यों का लोकार्पण, शिलान्यास और उद्घाटन कर विकास यात्रा को तेज गति से आगे बढ़ाने के दावे कर रहे हैं। लेकिन दूसरी ओर गांवों की वास्तविक स्थिति इन दावों से बिल्कुल उलट तस्वीर पेश कर रही है।

बस्तर सरपंच संघ ने जिला पंचायत CEO को भेजे अपने पत्र में साफ तौर पर उल्लेख किया है कि वित्तीय संसाधनों के अभाव ने ग्रामीण विकास की रफ्तार पूरी तरह से रोक दी है। संघ के अनुसार, पिछले कई महीनों से ग्राम पंचायतों को आवश्यक फंड उपलब्ध नहीं करवाए गए, जिसके चलते आधे-अधूरे कार्य अधर में लटक गए हैं और कई महत्वपूर्ण परियोजनाएँ शुरू होने से पहले ही ठप पड़ गई हैं।

सरपंचों की व्यथा—
पत्र में सरपंच संघ ने बताया है कि न तो समय पर राशि जारी हो रही है और न ही लंबित भुगतान का निराकरण। काम करने वाले मजदूरों और ठेकेदारों का भुगतान अटका हुआ है, जिससे गांवों में मनरेगा, स्वच्छता मिशन, पेयजल व्यवस्था, सड़क मरम्मत, आंगनबाड़ी भवन, सामुदायिक भवन सहित कई योजनाएँ रफ्तार नहीं पकड़ पा रही हैं।

“विकास कार्यों की कमर टूट चुकी है”
संघ ने सख्त शब्दों में कहा है कि यदि फंड की स्थिति जल्द नहीं सुधरी, तो पंचायतों में विकास कार्यों की “कमर पूरी तरह टूट जाएगी।” कई पंचायतों में सरपंच और सचिव आर्थिक संकट के बीच कार्य संचालन को लेकर भारी दबाव में हैं।

दूसरी ओर सरकार विकास को बता रही ‘प्रगति पर’
वहीं, इस पूरी स्थिति के बीच राज्य की डबल इंजन सरकार बार-बार यह दावा कर रही है कि बस्तर में विकास कार्य तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। लगातार हो रहे शिलान्यास और उद्घाटन कार्यक्रमों को सरकार विकास की उपलब्धियों के रूप में पेश कर रही है।

लेकिन सरपंच संघ का पत्र इन दावों के उलट जमीनी सच्चाई को उजागर करता है—जहाँ दिखावे के कार्यक्रमों के बीच असल विकास कार्यों के लिए फंड की भारी कमी बनी हुई है।

जनता में बढ़ रही नाराजगी, पंचायतें बेबस
गांवों के लोग मूलभूत सुविधाओं और अधूरे कार्यों को लेकर नाराज हैं। सरपंच और पंचायत प्रतिनिधि बताते हैं कि फंड न होने से वे जनता के सवालों का जवाब देने में असमर्थ हो रहे हैं।

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