*खेल के नाम पर बस्तर के मैदानों की लूट — करोड़ों की लागत से बने स्टेडियमों में पसरा सन्नाटा, खिलाड़ी हुए दरबदर, सरकार कार्यक्रमों की चमक में जला रही है खिलाड़ियों का भविष्य*
चंद्रहास वैष्णव
जगदलपुर, 13 नवम्बर। बस्तर के खिलाड़ियों के लिए बने खेल मैदान आज राजनीति और शासकीय कार्यक्रमों की बलि चढ़ चुके हैं। करोड़ों रुपए खर्च कर जिन मैदानों का सौंदर्यीकरण खिलाड़ियों के उज्ज्वल भविष्य के नाम पर किया गया था, वही मैदान अब सरकारी आयोजनों और नेताओं के मंच लगाने की जगह बन गए हैं।
करीब 4 करोड़ रुपए की लागत से तैयार जगदलपुर का सीटी ग्राउंड, जो कभी फुटबॉल खिलाड़ियों की धड़कन हुआ करता था, अब अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है। मैदान को विभिन्न हिस्सों में बांटकर अलग-अलग खेलों के लिए विभाजित कर दिया गया, जिससे फुटबॉल के लिए जगह ही नहीं बची। नतीजतन, पिछले तीन-चार वर्षों से यहां न तो अभ्यास होता है, न प्रतियोगिताएं। यह वही मैदान है जहाँ कभी दर्जनों युवा रोज़ाना फुटबॉल के सपनों के साथ पसीना बहाते थे।
हालांकि जिला फुटबॉल संघ (DFA) ने इस वर्ष 15 नवंबर से अखिल भारतीय फुटबॉल प्रतियोगिता इसी मैदान में कराने की पहल की है, ताकि मैदान को उसकी अस्मिता वापस मिल सके। लेकिन संघ के सदस्यों ने साफ कहा — “ग्राउंड और चेंजिंग रूम की दुर्दशा खिलाड़ियों का मनोबल तोड़ रही है। सरकार और प्रशासन की बेरुखी ने खेल की आत्मा को मार डाला है।”
इसी प्रकार हाता ग्राउंड, जिसे क्रिकेट ग्राउंड के रूप में करोड़ों की लागत से विकसित किया गया था, आज सूख चुके हरे मैदान की जगह बंजर धरती में तब्दील हो चुका है। रख-रखाव के नाम पर सालभर कोई देखभाल नहीं होती। सिर्फ सर्दियों में किसी संघ या समाज के आयोजन के दौरान एक-दो मैच खेले जाते हैं, बाकी वक्त मैदान वीरान पड़ा रहता है।
स्थानीय खिलाड़ियों का कहना है कि मैदानों पर “राजनीति की परत” इतनी मोटी चढ़ चुकी है कि अब खेलों की जगह नेताओं के भाषण और सरकारी कार्यक्रमों की गूंज सुनाई देती है। राज्योत्सव और अब जनजातीय गौरव दिवस के आयोजन के लिए सीटी ग्राउंड में टेंट और मंच लगाए जा रहे हैं — वही मैदान, जो खिलाड़ियों के पसीने और संघर्ष का प्रतीक हुआ करता था।
खिलाड़ियों और खेलप्रेमियों का सवाल सीधा है — जब करोड़ों खर्च कर बनाए गए मैदानों का इस्तेमाल सिर्फ सरकारी कार्यक्रमों के लिए होना था, तो फिर “खेलो इंडिया” जैसे अभियानों का क्या औचित्य रह गया?
बस्तर प्रशासन पर गंभीर आरोप लग रहे हैं कि खेल सुविधाओं के रख-रखाव में घोर लापरवाही बरती जा रही है। सरकार जहां “खेलो इंडिया ट्रायबल गेम्स 2025” की मेजबानी का जश्न मना रही है, वहीं बस्तर के मैदानों की वास्तविकता इस जश्न पर बड़ा सवाल खड़ा करती है।
दरअसल, सरकार खिलाड़ियों के भविष्य की आग में अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रही है — और बस्तर के मैदान, जो कभी उम्मीद की धरती थे, अब उपेक्षा की राख में तब्दील हो चुके हैं।