ग्राम सचियों का निलंबन की फाइल ठण्डे बस्ते में
दीपक विश्वकर्मा
उमरिया — जिला पंचायत के गठन और वहाँ पर अपर कलेक्टर जैसे उच्च प्रशासनिक अधिकारी की पद स्थापना के पीछे पंचायती राज का उद्देश्य था कि पंचायत राज व्यवस्था सुचारू रूप से चल सके,मध्यप्रदेश शासन के व्दारा भी इसी मंशा को लेकर हर जिला पंचायत में मुख्य कार्य पालन अधिकारी के पद पर एक अपर कलेक्टर को पदस्थ कर पंचायतों में कसावट लाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है, लेकिन इस कुर्सी पर बैठे आला अधिकारी ही पंचायतों को डूबोने लगे तो उस जिले की ग्राम पंचायतों की दुर्दशा का आंकलन किया जाना अत्यंत सहज हो जाता है।
उमरिया जिला पंचायत भी इसी तरह के झंझावात से जूझती नजर आ रही हैं। विदित होवे की ग्राम पंचायतों में मची अंधेर गर्दी की शिकायत करते करते लोग पीड़ा जनक स्थित से गुजर रहा है, लेकिन अंधेर गर्दी पर रोक लगाने वाले जिम्मेदार अधिकारी ही उस अंधेर गर्दी में शामिल हो जाये तो उससे गुजरना कठिन हो जाती है। ऐसे तमाम मामले है जो वर्षों से जिला पंचायत में धूल खाते पडे हुए हैं, हाँ इन मामलों को समय समय पर उठाकर जिम्मेदार लोग अपनी मुराद पूरी करते रहते हैं।
ऐसा ही एक संवेदनशील मामला उमरिया जिला पंचायत के जनपद पंचायत पाली के ग्राम पंचायत बेली का वर्षों से लटका पडा हुआ है, जिस पर ग्राम पंचायत के सचिव ने लगभग आठ लाख रूपये गंगा सरोवर तालाब के नाम पर वर्ष 2024 में फर्जी रूप से आहरित कर लगभग एक लाख उनचास हजार का काम करा कर शेष राशि को हज़म कर गया। मामले की शिकायत ग्राम पंचायत के पंच अशोक उपाध्याय के व्दारा जन सुनवायी में की गयी, जिस पर मुख्य कार्य पालन अधिकारी जनपद पंचायत पाली के व्दारा जांच दल गठित कर करायी गयी थी, जांच में यह साबित हो गया की संबंधित सचिव के व्दारा शासकीय राशि का गबन किया गया है। जांच प्रतिवेदन को मुख्य कार्य पालन अधिकारी जनपद पंचायत पाली के व्दारा जिला पंचायत उमरिया की ओर अपने अभिमत सहित भेंजी गयी थी लेकिन एक साल से अधिक समय व्यतीत हो गयें उस मामले में आज तक जिला पंचायत के व्दारा वैधानिक कार्यवाही नहीं की गयी।
अभी हाल में मुख्य कार्य पालन अधिकारी जिला पंचायत उमरिया के अभय सिंह ओहरिया ने दीपावली के ठीक पहले जनपद पंचायत पाली में एक समीक्षा बैठक आयोजित कर संचालित विकास कार्यों , शासन की विभिन्न योजनाओं के लिए आहूत की गयी थी। विकास कार्यों में फिसड्डी पाये गये इंजीनियर और एस डी ओ तक के अधिकारियों की जमकर खिंचाई करते हुए, पन्द्रह दिनों के वेतन काटने के आदेश दिये गये थे, इसी अनुक्रम में तत्कालीन बेली ग्राम पंचायत के सचिव महावीर सिंह और महरोई ग्राम पंचायत के सचिव फूल सिंह की निलंबन का प्रस्ताव तत्काल जनपद पंचायत पाली के मुख्य कार्य पालन अधिकारी से लेकर निलंबित किये जाने के फौरी आदेश जारी किये गए थे, साथ ही मुदरिया ग्राम पंचायत के रोजगार सहायक रावेन्द सिंह को निलंबन करते हुए जनपद पंचायत पाली में संलग्न करने के आदेश जारी किये गए थे। यह आदेश जारी हुए कमोवेश एक माह पूरे होने को हैं, लेकिन जिला पंचायत उमरिया इसे आज तक असली जामा नहीं पहना पायी। जिला पंचायत की इस कार्यवाही को दीपावली के पहले की बम बारी मानी जाती रही है। बताया जाता है कि इस बम बारी दीपावली के साथ ही सिमट गयी है, अब उस पर कुछ होने वाला नहीं है।
साल भर बाद भी नहीं दिया गया प्रभार
मालुम होवे की पिछले दीपावली में भी जिला पंचायत के यही मुख्य कार्य पालन अधिकारी जिला पंचायत उमरिया ने जिले भर में आर्थिक अनियमितताओं के मामले में वर्षों से निलंबित ग्राम पंचायत सचिवों की बिना गुण दोष देखे ही बहाली पर एक सचिव एक पंचायत की अवधारणा के चलते बेली ग्राम पंचायत के सचिव महावीर सिंह को हटा कर मदन सिंह को बेली ग्राम पंचायत में पदस्थ किया गया था, लेकिन महावीर सिंह ने एक साल बीत जाने के बाद भी ग्राम पंचायत का प्रभार मदन लाल को नहीं दिया गया, जिससे ग्राम पंचायत के विकास कार्यों को आगे बढाने में भारी असुविधाओं का सामना करना पड़ता है। बेली ग्राम पंचायत के सचिव प्रभार पाने के लिए जनपद पंचायत से लेकर जिला तक दौड लगा चुके हैं, लेकिन उनके पास गांधीजी का साथ नहीं है, तो उनकी कोई नहीं सुनता, और आज तक प्रभार नहीं मिला।
सूचना अधिकार में नहीं मिल रही जानकारी
बेली ग्राम पंचायत का प्रभार नहीं होने के कारण दर्जनों सूचना अधिकार के तहत जानकारी लोगों को नहीं मिल पा रही, जिससे लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है। प्रभार नहीं देने के पीछे की नीति भी यही है कि ताकि ग्राम पंचायत में हुये व्यापक आर्थिक अनियमितताओं की पोल न खुलने पाये। इस प्रकार एक ओर नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है वही भष्टाचार की फाइलों को दफन करने की साजिश है बेली ग्राम पंचायत से जुड़ी मुख्यमंत्री समाधान में भी शिकायतों का जमावड़ा कम नहीं है, लगभग छ माह से अधिक समय से मुख्यमंत्री समाधान में शिकायतों का निराकरण नहीं किया जा रहा है लेकिन एक भष्टाचारी सचिव को पालने की चाहे जो कीमत जिला पंचायत को चुकाना पडे, वह जिला प्रशासन चुकायेगा, लेकिन भष्टाचारी सचिव को आंच नहीं आने देंगे। भष्टाचारियो से जिला पंचायत की यारी से जिला भर में चर्चा का बिषय बना हुआ है । आज कल तो मातहत अधिकारियों ने दबी जुबान से कहते सुने जाते हैं कि भष्टाचारियो की बागडोर सीधे जिला पंचायत से हैं, नीचे से कुछ नहीं हो सकता।