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डाकिया डाक लाया, डाक लाया खुशी का पैगाम कही, कही दर्द का एहसास लाया

दीपक विश्वकर्मा

उमरिया::-आज भले संचार के माध्यम बहुत से विकसित हो गए लेकिन जब संचार का कोई भी माध्यम नहीं था तब डाकिए की भूमिका एक अलग ही एहसास कराती थी सायकिल कि घंटी बजाता जब डाकिया मोहल्ले में आता था तो मोहल्ले में देखने वाला हर व्यक्ति इस आस से देखता था कि उनके किसी अपने की जरूर चिट्ठी आई होगी
डाकिया डाक लाया, डाक लाया यह पंक्ति न सिर्फ एक मधुर स्मृति जगाती है, बल्कि हमें उन डाकियों की मेहनत और समर्पण की याद भी दिलाती है जो वर्षों से लोगों को जोड़ने का कार्य कर रहे हैं।

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