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छपडौर से नौगवा के मुख्य मार्ग तक किसानों ने बना डाली 1 किलोमीटर की जोरदार सड़क

 दीपक विश्वकर्मा

जिले के मानपुर जनपद के छपडौर गांव के किसानों ने वो कर दिखाया जो पंचायत और प्रशासन वर्षों से नहीं कर पाए। जहां जिम्मेदारों ने बजट नहीं कहकर हाथ खड़े कर दिए, वहीं ग्रामीणों ने एकजुट होकर अपनी मेहनत से एक किलोमीटर लंबी सड़क खुद बना दी। इस सड़क का निर्माण मिट्टी से किया गया है। गांव के लोगों ने चंदा इकट्ठा किया, ट्रैक्टर और जेसीबी का इंतजाम खुद किया और सड़क को ऐसा रूप दे दिया कि अब हर किसान आसानी से अपने खेतों तक पहुंच सके।

छपडौर गांव में यह सड़क परसेल खेत पहुँच मार्ग के रूप में जानी जाती है। यह छपडौर-नौगवा मुख्य मार्ग से जुड़ती है और करीब एक किलोमीटर लंबी है। पहले इस रास्ते पर इतने बड़े-बड़े गड्ढे थे कि पैदल चलना भी मुश्किल हो गया था। बारिश में यह रास्ता कीचड़ में तब्दील हो जाता था, जिससे किसानों को अपने खेत तक पहुंचना किसी चुनौती से कम नहीं था।

कई महीनों तक ग्रामीणों ने सरपंच और जनपद पंचायत से लेकर जिला प्रशासन तक फरियाद लगाई, लेकिन हर जगह जवाब मिला बजट नहीं है। आखिरकार गांव के किसानों ने फैसला किया कि अब और इंतजार नहीं, अपने दम पर ही काम करेंगे। उन्होंने मिलकर करीब 80 हजार रुपये का चंदा इकट्ठा किया और श्रमदान के जरिए सड़क बना डाली।

इस काम में गांव के दर्जनों किसान आगे आए प्रशांत चतुर्वेदी, पचैया चौधरी, पुष्पेंद्र केवट, शैलेष चतुर्वेदी, मोतीराम चतुर्वेदी, रामायण द्विवेदी, बजारी बैगा, हरीश केवट, शिवमूरत चतुर्वेदी, भोला बैगा, मोहन साहू, चंद्रप्रकाश चतुर्वेदी, बाबू कोरी, मोहन चौधरी, लटकु चौधरी, नंदू बैगा और सुरेश बैगा सभी ने श्रमदान और सहयोग से इस सड़क को पूरा कराया।

इस मार्ग से रोजाना 25 से 30 ट्रैक्टर, कई हार्वेस्टर, दोपहिया वाहन और पैदल चलने वाले ग्रामीण गुजरते हैं। सड़क बनने के बाद गांव में राहत की सांस ली गई है। किसान अब अपने खेतों तक आसानी से पहुंच पा रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि अगर एकजुटता और इच्छाशक्ति हो, तो किसी भी समस्या का समाधान खुद किया जा सकता है।

गांव के एक बुजुर्ग किसान ने बताया, हम सालों से उम्मीद लगाए बैठे थे कि पंचायत सड़क बनवाएगी, लेकिन कुछ नहीं हुआ। आखिर हमने ठान लिया कि इंतजार छोड़ो, अब खुद ही काम करो। चंदा जोड़ा, ट्रैक्टर मंगवाए और सड़क बना दी।

वहीं जब सरपंच ममता कोरी से इस बारे में बात की गई तो उन्होंने कहा कि मैंने भी अपने बैंक के ब्याज के पैसे से 70 टाली मुरूम (मिट्टी)डलवाया है। जहां बहुत बड़े गड्ढे थे, वहां भराई कराई गई है। बजट की कमी के कारण इस रोड का निर्माण नहीं हो सका । मैंने जनपद और जिला प्रशासन से कई बार मांग की है, पर जवाब यही मिला कि बजट नहीं है। जब पैसा मिलेगा तो पंचायत को भी दिया जाएगा।

सरपंच की यह सफाई ग्रामीणों के गुस्से को शांत नहीं कर सकी। लोगों का कहना है कि अगर पंचायत और प्रशासन अपनी जिम्मेदारी निभाते, तो आज उन्हें खुद जेब से पैसे खर्च नहीं करने पड़ते। किसान अब सवाल उठा रहे हैं कि आखिर विकास के नाम पर आने वाला बजट कहां जा रहा है छपडौर के किसानों की यह पहल आत्मनिर्भरता और एकता की ऐसी मिसाल है, जो पूरे जिले के लिए प्रेरणा बन गई है। जब व्यवस्था सो रही हो, तब यही जज़्बा गांव को आगे बढ़ाता है।

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